इंदौर खबरों की धड़कन पिछले दिनों शहर की बड़ी शख्सियत और मालवा के मुस्लिम तकरो में बड़ा नाम मुफ्ती मालवा हजरत हबीब खान साहब के जाने की खबर ने शहर की मुस्लिम मरहलों जो नुकसान का एहसास दिलया है उसकी कमी को पूरा करना शहर के साथ-साथ पूरे प्रदेश के लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। इस्लामी तालीम और उम्दा अखलाक में अव्वल है नए मुफ्ती एमालवा मुफ्ती हबीब यार खान साहब के लगाए गए इल्म के दरखत को १०० सीचने की जिम्मेदारी अब शेख उल हदीस और जूना रिसाला की बड़ी मस्जिद के खतीब व इमाम नुरुल हक नूरी साहब पर आ गई है। मोहतरम मुफ्ती साहब की वसीयत और ख्वाहिश भी यही थी कि उनके बाद मुफ्ती ए मालवा के ओहदे की बागडोर नूर उल हक नूरी साहब संभाले । मौलाना नूरी पिछले आधे दशक से इंदौर में इस्लामी तर्बियत का बड़ा मरकज रहे हैं । आप अपने हलके में इकलौते शेख उल हदीस हैं। आपको हदीसो का बड़ा जानकार माना जाता है। इसके साथ ही आप कुरान हाफिज भी हैं। इस्लामिया करीमिया सोसायटी द्वारा संचालित स्कूलों में आप पिछले 35 सालों से दीनियात का सबक देते आ रहे हैं। शहर की वर्तमान मुस्लिम आबादी के हर तीसरे व्यक्ति ने आपसे दीन का शुरुआती इल्म सीख है। इस्लामिया करीमिया जो शहर का बड़ा मुस्लिम इदारा है इसलिए ज्यादातर बच्चे यहीं से तालीम हासिल करके निकले हैं स्कूल के पुराने छात्र-छात्राएं आपके बेहतरीन अखलाक और तरबियात के उम्दा तरीके से वाकिफ हैं । यही वजह है कि आप अब मुफ्ती मालवा के फरिजे को भी बखूबी अंजाम देंगे। शहर के मुस्लिमों को भी आप से बड़ी उम्मीदें हैं । यह उम्मीद इसलिए और बढ़ जाती हैं कि मामूली इखुतलफो की वजह से शहर का मुस्लिम हल्का दो धड़ों में बंटा हुआ है और इस बाटवारे ने समाज की की तरक्की की राहों को दुश्वार किया हुआ है। मुफ्ती मालवा हजरत हबीब खान साहब की अंतिम यात्रा में करीब 10 हजार लोग शामिल हुए।
मुफ्ती साहब की कमी को पूरा करना मुश्किल ही नहीं नाममकिन